दहेज़ प्रथा

दहेज़ प्रथा एक सामाजिक कुरीति

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Sanskar Agrawal
Sanskar Agrawal 09 Nov, 2021 | 1 min read

दहेज प्रथा


दान कर दिया अपनी बेटी का उसने, अपनी जिंदगी उसने अब ससुराल के नाम किया था।

जैसे पहुंची अपने ससुराल वो तो, सबने अपनी निगाह उसकी गाडी पर ही टिकाया हुआ था ।।

लगा दी अपने जीवन की सारी कमाई एक बाप ने, बेटी से क्या लाई मइके से ये पूछा जा रहा था।

नम हो गयी आँखे मेरी तब जब मैंने देखा, मुंह दिखाई में क्या -क्या पहन के आई वो ये देखा जा रहा था।।

पैदा होती जब बेटी यहाँ पे तो, खुशी से ज्यादा उस बाप को दुःख होता था।

कहां से करेगा पूरी अपनी जिम्मेदारियां वो , इस गम में ही वो खो जाता था।।

ना लाये दहेज़ अगर घर से वो तो, प्रताड़ित उसे किया जाता था।

ले आये घर से दहेज़ अगर तो, और लाने को विवश किया जाता था।।

छीन ली कई लोगों की जिंदगी इस दहेज ने, कई परिवारों को इसने बर्बाद कर दिया था।

किया मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित उसे, मरने तक को विवश किया गया था।।

बनाई ऐसी कुरीति किसने मुझे पता नहीं, लगता है इसके पीछे भी समाज का हाथ था।

कर दिया गया दुशवारा जीना बेटी का, मानसिक रूप से उसे सताया गया था।।

लिखेगा भी तो क्या लिखेगा इस कुरीति पर संस्कार, ना जाने इसनें कितने घरों में अंधेरा किया था।

बंद होनी चाहिए दहेज प्रथा नाम की कुरीति, इसने कई बेटियों का जिंदगी बर्बाद किया था।।


संस्कार अग्रवाल


वाल

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Sanskar Agrawal

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