दरिया का समंदर।

दरिया के इंतजार में बैठा समंदर।

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sandeep balmik
sandeep balmik 02 Oct, 2021 | 1 min read

कुछ इश्क बड़े ही अनोखे होते हैं, है ना 

दरिया ओर समंदर को ही देख लो। 

मंजिल का पता हो तो चलने का मजा 

ओर बढ़ जाता है और अगर बैठी बाहें 

पसारे आपका इंतजार कर रही हो तो 

रास्ते में आने वाली परेशानियां सुकून 

सी देने लगती हैं। दरिया को पता है 

समंदर से मिलते ही उसका अस्तित्व

 खो जाने वाला है, फिर भी वो कभी

 तेज रफ्तार से भागती हुई, तो कभी 

ऊंचे झरनों से जमीन पे गिरती हुई, 

कभी ठेठ पहाड़ों को काटते हुई समंदर 

की तरफ बढ़ते चली जाती है। 

हर कठिनाई को अपनी उत्सुकता से 

पार करती हुई वो जाती है क्योंकि 

वो जानती है अंत में वो खुदको समंदर 

को शोप देगी और हमेशा के लिए उसकी हो जायेगी।

 बस उसे और क्या ही चाहिए। 

दूसरी ओर समंदर बेसब्री से इंतजार करता 

हुआ एक जगह बैठा रहता है ताकि दरिया 

उसको आसानी से ढूंढ सके। उतावला होकर 

कभी शोर मचाता कभी किनारे पे जाकर 

टकराता मानो रेत से पूछ रहा हो कब 

आयेगी वो जिसका इंतजार मैं कर रहा हूं। 

जवाब ना मिलने पर फिर वापस उदास चला जाता। 

कभी मछलियों के झुंड को भेजता की जाओ देखो कही वो आ तो नही गई। वो बस उसे गले लगाकर उसको खुदमे छुपा लेना चाहता है इतना अंदर की फिर कोई उसे ढूंढ ना पाए। दरिया आती है आसमान में तारे कुछ ज्यादा ही चमकने लगते है समंदर का शोर या उसकी खुशी थोड़ी और तेज हो जाती है। वो मिलते हैं हर रोज पर ऐसे मिलते हैं मानो पहली दफा मिल रहे हो। ये इश्क बड़ा ही अनोखा है। है ना।

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