तराजू में रख के जब तकदीर तौली मैंने।
एक मुट्ठी मुख और दो मुट्ठी गरीबी ने सारा बैलेंस बीगाड. दिया।
सौदा हुआ। तो जिन्दगी झुलस गई, झोपड़-पटी के मचानों पे।
अगर ना सौदा हुआ होता, तो भी कहा हम मैहफीलो की खीडकियो से झांकते नज़र आते।।
जनाब!! २ रूपए कम पड़ रहें हैं बस, क्या उधार देंगे???...
हाथ जो आगे बढ़ाया उम्मीद भरी निगाहों से, २ रूपए तो ना मीले पर जीलत जरली।।
जनाब!! यbका समान उठा लूं??.. रेलवे के उस पार छोड़ भी आऊंगा।
पैसे की चिंता ना करें। जीतना मन करे उतना दे। यदि फिर ना भी दे तो चलेगा।
हाथ जो आगे बढ़ाया उम्मीद भरी निगाहों से, सामने से अपना सामान थमाते हुए आखीर उसने कहा ही दिया....
""बड़े अच्छे मजदूर जान पड़ते हो""
वैसे मुझे बुला नहीं लगा "मजदूर" सुन कर !!
इन्सानो की गीनती में आता हूं, ये मैं कब का भुल चुका था।।
रेलवे पुल को पार कर के। मैं वापस खाली हाथ लौट आया आज भी।।
आज फिर से, एक मुट्ठी मुख और दो मुट्ठी गरीबी ने साला सारा बैलेंस बीगाड. दिया।।
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बहुत बढिया 🌟🌟
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