सरहद का शजरा

सामाजिक दृष्टिकोण पैदा करने की सख्त जरूरत है।

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Salil Saroj
Salil Saroj 12 Dec, 2020 | 1 min read



इक सदी से उजड़ा हूँ मैं

कई हादसों से गुज़रा हूँ मैं


महफिल में कोई पूछता नहीं

कव्वाली तो कभी मुजरा हूँ मैं


भूले-भटके ही आते हैं पास मेरे

शहर का बदनसीब हुज़रा* हूँ मैं


निगाहे-कैफियत से कौन देखे मुझे

लड़की हूँ और अभी अजरा* हूँ मैं


किसी मुकाम तक पहुँचता ही नहीं

कश्मीर की शक्ल का माजरा हूँ मैं


इक अरसे से वजूद की तलाश में हूँ

दो मुल्कों की सरहद का शजरा* हूँ मैं


*हुजरा- इबादत करने की जगह

*अजरा-कुँवारी 

*शजरा-नक्शा


सलिल सरोज

समिति अधिकारी

लोक सभा सचिवालय

नई दिल्ली

9968638267

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