इक सदी से उजड़ा हूँ मैं
कई हादसों से गुज़रा हूँ मैं
महफिल में कोई पूछता नहीं
कव्वाली तो कभी मुजरा हूँ मैं
भूले-भटके ही आते हैं पास मेरे
शहर का बदनसीब हुज़रा* हूँ मैं
निगाहे-कैफियत से कौन देखे मुझे
लड़की हूँ और अभी अजरा* हूँ मैं
किसी मुकाम तक पहुँचता ही नहीं
कश्मीर की शक्ल का माजरा हूँ मैं
इक अरसे से वजूद की तलाश में हूँ
दो मुल्कों की सरहद का शजरा* हूँ मैं
*हुजरा- इबादत करने की जगह
*अजरा-कुँवारी
*शजरा-नक्शा
सलिल सरोज
समिति अधिकारी
लोक सभा सचिवालय
नई दिल्ली
9968638267
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