मेरे ख़्वाबों में यूँ बेवज़ह न आया जाया करो,
ख़्यालों में आकर बार-बार मुझे न सताया करो,
धड़कनें बेतहाशा बढ़ जाती हैं तुम्हें देखकर भी,
होश में रहने दो, नज़रें मिलाकर न झुकाया करो,
घायल करती है इस दिल को हरेक अदा तुम्हारी,
शर्माती निग़ाहों से देखके हमें यूँ न मुस्कुराया करो,
सब कुछ हारे बैठे हैं तुमपर पहली मुलाक़ात से ही,
लबों का ले सहारा हमें बातों में यूँ न उलझाया करो,
कब से खड़ा है “साकेत" इंतज़ार में, पलकें बिछाए,
अपने एक-एक दीदार के लिए यूँ तो न तरसाया करो।
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