अभी से ही चंद सवालों में ही जो मन उलझ जाएगा,
और यूँ ही ह्रदय जवाब पाने से पूर्व ही सहम जाएगा,
स्थितियों से लड़ने की लालसा जब समप्ति पर होगी
हर क्षुद्र ठोकर से जो पथिक तन यूँ ही सिहर जाएगा,
स्वप्न देखने के विचार भी जो नेत्रों को भयभीत करेंगे,
तो आशाओं का हर मकान, अकारण ही ढह जाएगा,
क्या हाथ आएगा और क्या रेत की तरह फिसलेगा यूँ,
रसरहित जीवन का कहो, क्या ही उद्देश्य बच जाएगा,
अब भी जो न सँभल सके “साकेत" तो ये याद रखना,
अंततः पीछे पलट-पलटकर देखना ही शेष रह जाएगा।
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