दरिया-ए-इश्क़

अब बस और पागलपन नहीं

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 30 May, 2021 | 1 min read
#my_pen_my_strength

इस हाल में एक और रात मैं बिता नहीं सकता,

करके याद गैर को, ख़ुदको और रुला नहीं सकता,


था अब तक इंतजार दिल को उसके लौट आने का,

अब रास्तों पर उसके लिए पलकें बिछा नहीं सकता,


माना है मलाल मुझे कि मैं हार गया बाज़ी इश्क़ की,

दरिया-ए-इश्क़ में अब और गोते मैं खा नहीं सकता,


हैं और भी बहुत सारी जिम्मेदारियाँ मेरे इन कंधों पर,

जो बाज़ी हार चुका उसपर और दाँव लगा नहीं सकता,


पागलपन की हदें पार हो चुकीं “साकेत" अब बस करो,

ऐसे हालात में कोई अपने भी किसी काम आ नहीं सकता।


BY :— © Saket Ranjan ShuklaI

IG:— @my_pen_my_strength

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Saket Ranjan Shukla

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