कुरेदो ज़ख्म कोई और दर्द सुनाओ तो सही,
हम समझें न समझें, तुम समझाओ तो सही,
क्या ही बचा है तुममें, जो तुम्हारा साथ दें हम,
मदद करें न करें, तुम आवाज़ लगाओ तो सही,
तरस नहीं, अब तो मज़ा है आता तुम्हें सुनकर,
दिल चाहे न चाहे, तुम महफ़िल जमाओ तो सही,
हम हँसेंगे तुम पर, ताने कसेंगे, मजाक भी बनाएँगे,
हम राह सुझाएँ न सुझाएँ, तुम सर झुकाओ तो सही,
है यही दस्तूर ज़माने का “साकेत" लोग ऐसे ही होते हैं,
तुम सह पाओ कि न पाओ, सलीके से मुस्कुराओ तो सही।
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