ख़ुद की भी लिखी हर एक बात से मुकर जाता हूँ मैं,
कभी ना चाहा था जो, वही सारे काम कर जाता हूँ मैं,
क्या हुआ है मुझे जो क्यों ख़ुद से भी इतना नाराज़ हूँ,
क्यों फिर ज़रा सी तन्हाई पाकर भी बिखर जाता हूँ मैं,
खामोशी तो फितरत में थी मेरे तो आज क्या नया हुआ,
क्यों फिर अब बात बात पर, ख़ुद से भी बिछड़ जाता हूँ मैं,
हर फैसले पर हज़ार बार सोचने की आदत से परेशान था,
क्यों अब यूँ बेफिक्र हो, आवारगी करने पर उतर जाता हूँ मैं,
हर एक ग़ज़ल में लिखता हूँ “साकेत” कि कमजोर नहीं तुम,
कैसे फ़िर ख़ुद की लिखी इस बात से भी, मुकर जाता हूँ मैं।
BY:—© Saket Ranjan Shukla
IG:— @my_pen_my_strength
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Behtareen
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