क़रीब है मंज़िल

क़रीब है मंज़िल

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 15 Jun, 2021 | 1 min read
#my_pen_my_strength

मुश्किलें बढ़ रही हैं मतलब मंज़िल के क़रीब हूँ मैं,

ऐसा लग रहा है जैसे ख़ुद ही, ख़ुद का नसीब हूँ मैं,


तैयारी बहुत की है यहाँ तक आने के लिए भी मैंने,

मेहनत से पाया है सब, न कि कोई खुशनसीब हूँ मैं,


हारकर भी जीतता आया और जीतकर भी हारा हूँ,

कोई खिलाफ़ था नहीं, ख़ुद ही ख़ुद का रक़ीब हूँ मैं,


रुकने की वज़हें, इतनी बड़ी थी नहीं कि रुका जाए,

बढ़ते रहने का हौसला और सँभलने की तरकीब हूँ मैं,


हर तरह के खेल से वाक़िफ हो चुका “साकेत" अब तो,

कहीं कोई ये समझने की भूल न कर बैठे कि शरीफ़ हूँ मैं।

BY :— © Saket Ranjan Shukla

IG :— @my_pen_my_strength


रक़ीब = प्रतिद्वंदी

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Saket Ranjan Shukla

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