मुश्किलें बढ़ रही हैं मतलब मंज़िल के क़रीब हूँ मैं,
ऐसा लग रहा है जैसे ख़ुद ही, ख़ुद का नसीब हूँ मैं,
तैयारी बहुत की है यहाँ तक आने के लिए भी मैंने,
मेहनत से पाया है सब, न कि कोई खुशनसीब हूँ मैं,
हारकर भी जीतता आया और जीतकर भी हारा हूँ,
कोई खिलाफ़ था नहीं, ख़ुद ही ख़ुद का रक़ीब हूँ मैं,
रुकने की वज़हें, इतनी बड़ी थी नहीं कि रुका जाए,
बढ़ते रहने का हौसला और सँभलने की तरकीब हूँ मैं,
हर तरह के खेल से वाक़िफ हो चुका “साकेत" अब तो,
कहीं कोई ये समझने की भूल न कर बैठे कि शरीफ़ हूँ मैं।
BY :— © Saket Ranjan Shukla
IG :— @my_pen_my_strength
रक़ीब = प्रतिद्वंदी
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.