ये कैसे हो गया

ये कैसे हो गया

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 26 Aug, 2021 | 1 min read

मेरे सफ़र में तन्हाइयों के बीज बो गया,

वापस न आए, अबकि बार जो वो गया,


राहें दिखाता था वो दरिया-ए-इश्क़ में मुझे,

मेरा भोर का तारा बादलों में कहीं खो गया,


मैं ख़्वाब सिर्फ़ उसके लिए ही बुनता था कभी,

शायद अब मेरा हर सपना मुझमें ही है सो गया,


घावों के सहारे भी उसे याद न करे अब दिल मेरा,

वो मेरे जख़्मों को झूठे अश्क़ों से कुछ यूँ धो गया,


हम तो सिर्फ़ उसे ही अपना मानते आए थे “साकेत",

और वो महबूब तो देखते ही देखते अजनबी हो गया।


BY:— © Saket Ranjan Shukla

IG:— @my_pen_my_strength

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Saket Ranjan Shukla

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