एकमात्र डर दीपक का

एकमात्र डर दीपक का

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 17 Oct, 2022 | 1 min read

न आँधियाँ टिकती हैं, न तूफ़ान कुछ बिगाड़ पाता है,

मेरे हौसले को जो आज़माता है, लज्जित हो जाता है,


किए हैं कईयों ने प्रयत्न कि वो रोक लें मेरी आभा को,

मगर हर प्रयत्न उनका, उनकी ही अंगुलियाँ जलाता है,


आशावान नैनों से जो देखे मुझे, मैं मार्ग उसे दिखाऊँगा,

निराशावादी काला अंधेरा‌ ये, मुझसे ही तो भय खाता है,


मुझे मुझसे है लाभ कहाँ‌, स्वार्थहीनता ही है परिचय मेरा,

जलता हूँ मैं निरंतर तो मेरे प्रकाश से जग ये जगमगाता है,


परंतु कमी मेरी मैं तुम्हें बताता हूँ “साकेत" सुनो ध्यान धरो,

मुझ प्रज्वलित दीपक को, एक मेरे ही तल का अंधेरा डराता है।


BY:— © Saket Ranjan Shukla

IG:— @my_pen_my_strength


कुछ कठिन शब्दार्थ👇🏻

लज्जित = शर्मिंदा (Ashamed)

प्रयत्न = कोशिश (Try)

आभा = तेज, शोभा, चमक (Luster/Splendor/Aura)

आशावान = आशापूर्ण (Hopefull)

नैनों = आँखों (Eyes)

मार्ग = रास्ता (Way)

निराशावादी = आशरहित (Pessimistic)

स्वार्थहीनता = निस्स्वार्थता (Selflessness)

निरंतर = लगातार (Continuesly)

परंतु = मगर (But)

प्रज्वलित = जलता हुआ (Kindling)

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Saket Ranjan Shukla

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