मुस्करा तो रहा हूँ मगर अंदर से बर्बाद हूँ मैं,
चीखती है ख़ामोशी, दबी हुई सी आवाज़ हूँ मैं,
मैं अनजान रहता हूँ अपने भी इरादों से शायद,
जैसे ख़ुद के लिए भी मैं अब तक इक राज़ हूँ मैं,
गुनगुनाती है ये हवाएं मेरे नाम को सिसकते हुए,
शक़ है ख़ुदपर कि बिखरा हुआ सा कोई साज हूँ,
हाल जब पूछती है ये ज़िन्दगी मुझपर हंसते हुए,
ख़ुद से नज़रें चुराके कहता हूँ कि हाँ, आबाद हूँ मैं,
कहते हैं लोग कि कितना बदल गए हो तुम “साकेत",
मैं ख़ुद भी तो समझता हूँ, कल ये न था जो आज हूँ मैं।
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Nice
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