हाल-ए-दिल तुम्हें न बताएँगे तो कहाँ जाएँगे,
अश्क़ तुम्हारे आगे न बहाएँगे तो कहाँ जाएँगे,
समझता और कौन है भला, तुम्हारे सिवा मुझे,
हालात अपने तुम्हें न समझाएँगे तो कहाँ जाएँगे,
भोर से सांझ तलक ये रुपया रखता है व्यस्त मुझे,
थके-हारे हम तुम्हारे पास न आएँगे तो कहाँ जाएँगे,
हैं किस्से कई, कहानियाँ कई, सफ़र-ए-ज़िंदगी की,
गमगीन नज़्म अपने तुम्हें न सुनाएँगे तो कहाँ जाएँगे,
ऐ तन्हाई, सिर्फ़ तुमने कबूली है दोस्ती “साकेत" की,
भला अब तुम्हें भी हमराज़ न बनाएँगे तो कहाँ जाएँगे।
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