हौसले जुटाकर फ़िर एक बार वार करते हैं,
चलो हार को हराकर ख़ुद को तैयार करते हैं,
हम अपने सपनों को ख़ुद बदलेंगे हक़ीक़त में,
उनसे दूर रहेंगे जो मदद नहीं कारोबार करते हैं,
मुश्किलों का आना जाना तो लगा रहेगा सफ़र में,
घबरा कर ही सही, तूफ़ानों से नज़रें चार करते हैं,
जहाँ जहाँ गलत थे, हर हार के पहले फैसले हमारे,
बैठकर ज़रा इत्मीनान से उनपर भी विचार करते हैं,
हम उनमें से नहीं “साकेत" जो बिखर कर थम जाएँ,
हम वो हैं जो ज़ख्मों के सहारे जीत इख़्तियार करते हैं।
BY:— © Saket Ranjan Shukla
IG:— @my_pen_my_strength
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