नए नए कोंपल फूटे हैं, नई कलियाँ हैं खिली,
पतझड़ को छोड़कर सृष्टि बहारों से जा मिली,
पंछियों की चहचहाहट में भी नएपन का सुर है,
बागों में लौटी है रौनक, कोयल की कूक मधुर है,
आमों की मंजरियाँ, अब फलों का रूप ले रही हैं,
लीचीयाँ भी बागानों से प्रलोभन जैसे हमें दे रही हैं,
तरबूजों और खरबूजों से हाट नए सिरे सज रहा है,
ककड़ियों और खीरों का स्वाद जुबान पे चढ़ रहा है,
नए मौसम का आरंभ है ये, पुरानापन खो सा गया है,
बदलती छटाएँ देखके ये आसमान भी नया हो गया है,
पेड़ों से पतझड़ में बिछड़े पत्ते भी, जन्म नया पा रहे हैं,
शुष्क पड़े बाग एवं वन भी नए से होकर लहलहा रहे हैं,
विक्रम संवत् 2081 में, नवाचार का आरंभ होना तय है,
माँ दुर्गा के शुभागमन से, प्रफुल्लित हम सबका हृदय है,
माता के शुभाशीष से, जो नुतनत्व फिज़ाओं में आज है,
बधाई हो ये हिन्दू नववर्ष, जो नवीनता का ही आगाज़ है।
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