अपना भी रहूँ तो कैसे

अपना भी रहूँ तो कैसे रहूँ मैं

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 11 Aug, 2020 | 1 min read
#poetry Life Betrayed #hindipoetry Reality #hindi

मेरे अपने ही साथ देने से मुकर गए हैं,

अब किससे लड़ूँ और कब तक लड़ूँ मैं,

ख्वाब‌ जो सारे खुद-ब-खुद बिखर गए हैं,

ज़िद पर अड़ूँ भी तो किनके लिए अड़ूँ मैं,


जिनसे सहारे की उम्मीद थी, खिलाफ खड़े हैं वो,

गैरों से सर्तक था, अब क्या अपनों से भी डरूँ मैं,

हावी हुए वो चार लोग फिर, जिनसे लड़ना था मुझे,

अपनों ने ही दबाया मुझे, अब करूँ तो क्या करूँ मैं,


मकान तो पक्का था मगर नींव में लगी सेंध का क्या करूँ मैं,

जब अपने ही ख़िलाफ़ हों तो फ़िर अपना भी रहूँ तो कैसे रहूँ मैं।

By:— © Saket Ranjan Shukla

IG:— @my_pen_my_strength

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Saket Ranjan Shukla

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