ढूँढ कर तो देखो न, मिले अगर जो मिल जाए,
सुकून का फूल यहाँ, खिले अगर जो खिल जाए,
है शायद बलुई मिट्टी सी अनूठी ये शख्सियत मेरी,
कोशिश करो नए सांचे में, ढले अगर जो ढल जाए,
हालातों का जायजा लेते-लेते चलना ही भूला मन ये,
चला कर फिर देखो इसे, सँभले अगर जो सँभल जाए,
हैं ज़ख्म ज़िंदगी में कई, हैं खरोचें दिल के सतहों पर भी,
तुम्हारा साथ पाकर हालत मेरी बदले अगर जो बदल जाए,
ऐ हमसफ़र, ऐ हमनशीं मेरे, है अब “साकेत" ये हवाले तुम्हारे,
ये छलनी रूह मेरी, तुम्हारे ही हाथों सिले अगर जो सिल जाए।
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