नकचढ़ी है थोड़ी, थोड़ी मनमानियाँ करती है,
थोड़ी नटखट है वो, थोड़ी शैतानियाँ करती है,
मगर शरारतें उसकी, मुझे अच्छी लगने लगीं हैं क्यों,
ख़्याल में उसके, ये आँखें रातों को जगने लगीं हैं क्यों,
क्या हुआ है मुझे, क्यों उसे देखने को बेचैन रहता हूँ मैं,
कैसा एहसास है ये, जो उसके लिए महसूस करता हूँ मैं,
उसकी नादानियों पर, मुझे प्यार आजकल आता है क्यों,
सिर्फ उसे देखकर, दिल मेरा आजकल मुस्कुराता है क्यों,
पहला प्यार है वो मेरा, इसलिए ज़रा ज्यादा इतराया करती है,
बिल्कुल वो झल्ली मेरे जज़्बातों का भी हिसाब लगाया करती है,
बावरा मन मेरा फिर भी उसे सुबह शाम निहारना चाहता है क्यों,
करीब तो अब भी हूँ उसके मगर और पास जाना चाहता है क्यों?
BY:— © Saket Ranjan Shukla
IG:— @my_pen_my_strength
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