आजकल बेवज़ह भी बहुत मुस्कुराता है वो,
मगर शायद बात करने से ज़रा कतराता है वो,
जब से उसकी परवरिश ने उसे नीचा दिखाया है,
अब किसी और से दर्द बांटने से भी घबराता है वो,
तन्हा उम्र ने किया, ख़ामोश रहने को बच्चे बोलते हैं,
देख हाल ये ख़ुदसे नज़रे मिलाने से भी शरमाता है वो,
पहले मक़ान फ़िर उसी मक़ान को घर बनाया था उसने,
अब उसी मक़ान के कोने में दुबका आँखें बरसाता है वो,
देखा कुछ और था अब कुछ और नज़र आता है वो “साकेत",
बचाता है इज़्जत परिवार की तभी बेवज़ह भी मुस्कुराता है वो।
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