धड़कनें थी तेज मगर मेरी साँसे थमने लगी थी,
डरा मैं भी इस कदर की नसें भी जमने लगी थी,
चीखना भी चाहा मगर जैसे बेआवाज़ हुआ था मैं,
क्या कहूँ आखिर क्यों यूँ इस तरह बदहवास था मैं,
बस एक आवाज थी जो मुझे ही धमका रही थी जैसे,
घर में पड़ी हर तस्वीर, मुझे आँखें दिखा रही थी जैसे,
हाथों ने साथ छोड़ा, पैर भी मेरे जैसे बेजान हो रहे थे,
काँप रहा था हर ज़र्रा मेरा, हालात बस बदतर हो रहे थे,
हालत मेरी मुझसे पूछो मत, वो आवाज़ अब भी डराती है मुझे,
मैं आज भी सो नहीं पाता हूँ बिना डरे, इतना धमकाती है मुझे।
BY:— © Saket Ranjan Shukla
IG:— @my_pen_my_strength
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