इश्क़ से मेरे कभी न कभी तो पिघल जाओगे तुम,
मैं तुम्हारे साथ या फिर संग मेरे ही ढल जाओगे तुम,
किस्से, कहानियाँ मशहूर होंगे हमारी आशिकी के भी,
सोचा था कि तेरे रंग में मैं और मेरे रंग, रंग जाओगे तुम,
मगर ये नशीली आँखें फरेबी भी हैं, किसे मालूम था भला,
इल्म भी न था कि करके मुझे बर्बाद, यूँ सँभल जाओगे तुम,
कभी हमसफ़र होने की बड़ी बड़ी कसमें खाते थे लब तुम्हारे,
सोचा न था, इतनी जल्दी मुझे भुला, आगे निकल जाओगे तुम,
दिल बावला था, कहता था कि रुक जा “साकेत" अब और नहीं,
हवाओं ने इसे समझाया था कि मौसम की तरह बदल जाओगे तुम।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Nice write up
Please Login or Create a free account to comment.