नया शहर

नए शहर में शायद पुराने ख़ुद को नई पहचान बनाने आया हूँ

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 02 Feb, 2021 | 1 min read

कुछ पाने के लिए ही मैं नए शहर में आया हूँ,

आँखों में अपने कई ख़्वाब संजो कर लाया हूँ,

मगर अब जैसे मुझसे मेरा भी सब छिन रहा है,

लगता है जैसे मैं ख़ुद को ही नहीं समझ पाया हूँ,


चाहिए क्या था मुझे और अब जाने क्या चाहता हूँ,

किसे कामयाबी कहता था और क्या अब माँगता हूँ,

सारे ख़्याल मेरे अब उलझने लगे हैं जैसे यहाँ आकर,

पता ही नहीं चल रहा कि मैं ख़ुद को कितना जानता हूँ,


लगने लगा है जैसे न मेरा अपना हूँ, न ही ख़ुद से पराया हूँ,

शायद ख़ुद को खोकर, नई पहचान बनाने नए शहर आया हूँ।


BY:— © Saket Ranjan Shukla

IG:— @my_pen_my_strength

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