ठहर कुछ पल ऐ ज़िंदगी

ठहर कुछ पल ऐ ज़िंदगी

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 06 Dec, 2021 | 1 min read

अनजान हैं रास्ते, सुनसान सा ये सफ़र लगता है,

सहमी हैं हवाएँ, गुज़रे तूफ़ान का असर लगता है,


डर-डर कर, बढ़ रहे हैं आगे अब तो क़दम भी मेरे,

ठोकरों से भरा और काँटों से घिरा ये डगर लगता है,


हो जैसा भी क़िस्सा लिखा, मेरी क़िस्मत ने मेरे लिए,

बेपरवाह ये क़िरदार मेरा, मुझसे भी बेख़बर लगता है,


दिन में सपनों के पीछे भागना और सारी रात जागना है,

हौसले बुलंद हैं मगर थकान से भी भरा हर पहर लगता है,


थोड़ी मोहलत चाहिए “साकेत" की इच्छाशक्ति को भी अब,

ठहर जा ऐ ज़िंदगी! अब तेरी रफ़्तार से भी मुझे डर लगता है।

BY:— © Saket Ranjan Shukla

IG:— @my_pen_my_strength

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