आ कभी तो तू ऐसे कि आहट तक न हो,
चिंता न दिल में, कोई घबराहट तक न हो,
हवाएँ भी गुमसुम होके सन्नाटों में खो जाएँ,
तेरे क़दमों से, पत्तों में सरसराहट तक न हो,
आ भर ले कभी मुझे बाँहों में कुछ इस तरह,
सुबह तक मेरे ज़िस्म में सुगबुगाहट तक न हो,
कर दे बेफ़िक्र इतना कि वक़्त की परवाह न रहे,
सुकून दे ज़रा, दिल में कोई हड़बड़ाहट तक न हो,
जकड़ ले ऐ नींद कभी तो “साकेत" को इस क़दर,
कि फ़िर कोई ख़्वाब संजोने की उकताहट तक न हो।
BY:— ©Saket Ranjan Shukla
IG:— @my_pen_my_strength
कुछ कठिन शब्दार्थ 👇🏻
सुगबुगाहट:— आतुरता/व्याकुलता
सरसरहाट:— हवा आदि के गुजरने से उत्पन्न होने वाली ध्वनि
हड़बड़ाहट:— जल्दबाजी में होने वाली घबड़ाहट
उकताहट:— अधीरता
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