क्या ही फ़र्क पड़ता है

किसी क्या ही फ़र्क पड़ता है

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 08 Apr, 2021 | 1 min read
#my_pen_my_strength

मैं बोलूँ या ख़ामोश रहूँ, क्या ही फ़र्क पड़ता है,

मैं हँसू या अश्क बहाऊँ, क्या ही फ़र्क पड़ता है,


साँसे चलती रहें मगर बदन में कोई हरकत न हो,

मैं जीते जी बुत बन जाऊँ, क्या ही फ़र्क पड़ता है,


होश में रहना न चाहूँ, मदहोशी भी सँभाली न जाए,

पागल या आवारा कहलाऊँ, क्या ही फ़र्क पड़ता है,


सबको किनारा दिखाकर, ख़ुद हिलकोरे खा रहा हूँ,

पार करूँ या ख़ुद को डुबाऊँ, क्या ही फ़र्क पड़ता है,


जब तुझे फ़र्क नहीं पड़ता “साकेत" राह-ए-सफ़र का,

फ़िर कौन ही अपना है, किसी को क्या ही फ़र्क पड़ता है।


BY:— © Saket Ranjan Shukla

IG:— @my_pen_my_strength

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Saket Ranjan Shukla

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