ऊँचाई इतनी नीचे झाँक कर ही रूह काँप जाए,
ये शोर करती हवाएँ भी, मेरे इरादे ना भाँप पाए,
हर ज़र्रा मेरा घबरा कर जब मुझे रोक लेना चाहे,
मगर मन मेरा उस ऊँचाई पर झूले में पेंग लेना चाहे,
पीछे चट्टानें ऊँची-ऊँची और आगे खाई अथाह गहरी हो,
साँसे थम थम कर चलें, चीख ज़ुबान पर आकर ठहरी हो,
सारी ज़िन्दगी ख़ामोश रहने का हिसाब तब चुकता करूँगा,
मौत के डर को हर उस पल में, दिल से कुछ यूँ दफा करूँगा,
मुझे चुनौतियों के सामने डालकर, बहुत डराया है इस सफ़र ने,
ख़ुद पर भी बहुत बार दया आई है, रोया हूँ कई बार इस डगर में,
मगर उस पल बस खुद को तसल्ली से आजमाने की ठान लूँगा मैं,
आखिरी दिन है ये, हर पल आख़िरी है, ऐसा ही कुछ मान लूँगा मैं,
मेरी ये ज़िन्दगी भी जब मेरे पागलपन की आख़िरी हद ना माप पाए,
मैं बार बार कारनामे करूँ ऐसे कि उन वादियों की भी रूह काँप जाए।
*_By:— © Saket Ranjan Shukla_*
*_IG:— @my_pen_my_strength_*
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Wah
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