शोहरत तुम्हें मिली और सर मेरा घूम गया,
ख्वाब तुम्हारे पूरे हुए, आशियां मेरा लूट गया,
मैं तुम्हारी कामयाबी पर भी मगरूरी करने लगा,
पता ही ना चला कब तुम्हारी जी हुजूरी करने लगा,
मैं टूटता गया और तुम कामयाबी की सीढ़ी चढ़ते रहे,
मैं ख़ुद से दूर होता रहा, तुम रुतबे में भी आगे बढ़ते रहे,
बर्बाद होने को ही जैसे, मैं तुम्हारा हमसफ़र बनने आया था,
तुम्हारे ख्वाबों की कीमत ख़ुद को लुटा कर भरने आया था,
बीच मंझधार से निकाला तुम्हें और खुद किनारे पर ही डूब गया,
तुम्हें मिली थी ना ये शोहरत, फ़िर ना जाने क्यों मेरा सर घूम गया।
BY:—© Saket Ranjan Shukla
IG:—@my_pen_my_strength
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