हँसते मुस्कुराते इस समाज का, असल रंग समझाता हूँ,
जलते हुए सपने और खाक हो रहा भविष्य दिखाता हूँ,
जिस कुरीति की बलि चढ़ जाता है बचपन कुछ बच्चों का,
आपको उस बाल विवाह की प्रथा से परिचित करवाता हूँ,
जिनके सपने अभी हौसलों की उड़ान भरने की ताक में हैं,
जिनके पंख आसमानी ऊँचाइयों को मापने की फिराक में हैं,
डोली के रूप में उठ रही उनकी अरमानों की अर्थी दिखाता हूँ,
आइए! इस बेदाग समाज के काले कलंक से वाकिफ कराता हूँ,
कैसे कुछ माँ-बाप ही अपने बच्चों की खुशियों का सौदा कर लेते हैं,
उनके पढ़ने की उम्र में ही, उन्हें जिम्मेदारियों के हवाले कर देते हैं,
उम्मीद हार चुके उन नादानों की तस्वीर आज लिखकर दिखाता हूँ,
आइए! आज आपको समाज की मर चुकी इंसानियत से मिलवाता हूँ,
जो हाथ किताबों की ओर बढ़ने थे, वही हाथ चूल्हा चौका कर रहे हैं,
जिन्हें देश का भविष्य बदलना था, वो आवाज उठाने से ही डर रहे हैं,
जिनसे रौशन हुआ था घर आँगन, उनका बर्बाद हुआ सफ़र दिखाता हूँ,
बेतुकी कुप्रथाओं के समक्ष मजबुर, उस नादान का हर दर्द समझाता हूँ,
ख़ुद भी जो सँभले नहीं हैं उन्हें, परिवार की जिम्मेदारी दे दी जाती है,
उनके सपने, उनकी इच्छाएँ मार उनकी आजादी उनसे ले ली जाती है,
झूठी मुस्कान तले छिपे, उन मासूम चेहरों का असल ज़ख्म दिखाता हूँ,
मासूमों से मासूमियत छीनते, समाज के काले करतूतों से पर्दा हटाता हूँ,
विवाह जैसे पावन बंधन को, जब श्राप के रूप में बच्चों पर थोपा जाए,
क्यों ना उठे आवाज बगावत में, क्यों ना इस सोच को यहीं रोका जाए,
पौराणिक सभ्यताओं और कुरीतियों के बीच का फ़र्क भी समझाता हूँ,
आइए! आज आपको बाल विवाह जैसी कुप्रथा से परिचित करवाता हूँ।
BY:—© Saket Ranjan Shukla
IG:— @my_pen_my_strength
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Bahut kadvi sachhai ko likh diya aapne .. bahut khub
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