हर्षोल्लास है चहुं ओर, चहुं ओर फैली खुशहाली है,
पर्वतराज अंजनेरी की तो, आज छटा ही निराली है,
माता अंजनी के हर्ष की सीमा कैसे पार पाएगा कोई,
नवजात मारुति के दर्शन पा, ये सृष्टि भी बलिहारी है,
वानरराज केसरी भी खुशी के मारे फूले नहीं समाते हैं,
पवनदेव भी अपने औरसपुत्र को देखते नहीं अघाते हैं,
स्वयं शिवशंकर लेकर रूद्रावतार, भूमंडल पर पधारे हैं,
मनभावन बालरूप धर कपीश हर किसी को छकाते हैं,
देवगण पुष्पवर्षा करते, गंधर्व उल्लास के गीत गा रहे हैं,
पशु-पंछी कर कोलाहल आनंदित सुर से सुर मिला रहे हैं,
ये पेड़-पौधे आज आह्लादित से होकर, बल खा रहे हैं ऐसे,
मानो अंजनीसुत को क्रीड़ा करने, अपने मध्य बुला रहे हैं,
संकटमोचन हुए अवतरित अब काहे का किसी को हो भय,
कष्ट, चिंताएं सौंप आंजनेय को, बोलो बजरंग बली की जय।
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