वो किया जो सही लगा मुझे

क्या ही बचा था करने को जो करता मैं

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 10 Apr, 2021 | 1 min read

दिल की आग में, जल जाना ही सही लगा मुझे,

ज़ख्म गहरे थे, बिखर जाना ही सही लगा मुझे,


किसी ने कोई कसर न छोड़ी मेरी आजमाईश में,

नासूरों के सहारे ही सँभल जाना ही सही लगा मुझे,


वक़्त ने भी तो मेरे किरदार को परख़ा था जी भरके,

ख़ुद को भूल, नए सांचे में ढल जाना ही सही लगा मुझे,


हरेक के नज़र में काँटे की तरह चुभने लगा वजूद मेरा,

ऐसी महफ़िलों से दबे पाँव निकल जाना ही सही लगा मुझे,


कहते हैं लोग कि “साकेत" तुम्हारे साथ क्यों चले भला कोई,

खुद्दार हूँ, ख़ुद को ख़ुद से किनारे कर जाना ही सही लगा मुझे।

BY:— © Saket Ranjan Shukla

IG:— @my_pen_my_strength

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