सुनने लगे हैं लोग मुझे भी

सुनने लगे हैं लोग मुझे भी

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 25 Oct, 2021 | 1 min read

मुस्कुराकर, और ज़ख्म ढक नहीं पाऊँगा,

रहा ख़ामोश तो मुझमें मैं बच नहीं पाऊँगा,


कर अदाकारी छुपाता रहा दिली घाव अपने,

लगता है अब कोई क़िरदार रच नहीं पाऊँगा,


बर्दाश्त की हद से भी पार है, आंकड़ा दर्द का,

झूठे बहाने बना और ख़ुद को ठग नहीं पाऊँगा,


लगा है जो चस्का ज़ुबान को ज़हर-ए-इश्क़ का,

ताउम्र सुकून का स्वाद शायद चख नहीं पाऊँगा,


सुनने लगे हैं “साकेत", महफ़िल में लोग मुझे भी,

शायद अब किसी राज़ को राज़ रख नहीं पाऊँगा।


BY :— ©Saket Ranjan Shukla

IG :— @my_pen_my_strength

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Saket Ranjan Shukla

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