सुनने को सब राज़ी बैठे हैं मगर सुनाए कौन,
ज़ख़्म दिल के हैं, सीना चीरकर दिखाए कौन,
नमक तो हर कोई जेब में भरकर ही आया था,
कितनी मात्रा किसकी थी, खुलकर बताए कौन,
हिस्से में मेरे सिर्फ़ झूठे वादे और झूठे दिलासे थे,
किरदार ही झूठे थे सबके, ईमान से निभाए कौन,
अकेला चला था सफ़र में, काँटो से दोस्ती कर बैठा,
अब यार ही हैं ऐसे तो मरहम की आस लगाए कौन,
तुम्हारे आँखो ने भी तुम्हें कमाल का लूटा है “साकेत",
अब जो पलकें नम हुईं हैं तो अश्क बेवजह बहाए कौन।
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