क्या करूँ

क्या करूँ

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 08 Jun, 2020 | 1 min read
#poetry Life Reality #my_pen_my_strength #hindi

जब मंजिल ही नज़रें चुराए तो क्या करूँ,

जब सफ़र ही समझ ना आए तो क्या करूँ,

क्या करूँ जब ख़ुद पर ही भरोसा ना हो मुझे,

जब ये जुबान भी लड़खड़ाए तो फिर क्या करूँ,


हालातों से लड़ूँ या फिर बचता बचाता फिरता रहूँ,

संभलने की कोशिश करूँ या बेवजह बिखरता रहूँ,

अब आदत सी होने लगी है अपनों से लुट जाने की,

बंधा रहूँ झूठे बंधनों में या यूँ ही सबसे बिछड़ता रहूँ,


मेरी हालात ही अब मेरी हँसी उड़ाए तो क्या करूँ मैं,

जब सफ़र ही राहों में कांटे बिछाए फिर क्या करूँ मैं?

By:— © Saket Ranjan Shukla

IG:— @my_pen_my_strength

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Saket Ranjan Shukla

saketranjanshukla

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