बेदर्द सर्दी

बेदर्द सर्दी

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 25 Nov, 2021 | 1 min read

काँप रहा है तन, मन में भी हलचल मची है,

कोहरे की चादर ओढ़े, ये कैसी धूप सजी है,

ठंडी हवाओं ने भी कोहराम ही मचा रखा है,

पानी के तो नाम से ही सबकी घिग्घी बंधी है,


कपड़े ढेर से पहनकर भी कंपकंपा रहे हैं सब,

रजाई में बैठे-बैठे ही महफ़िल जमा रहे हैं सब,

बाहर जो हैं उनकी भी हालत कुछ ठीक नहीं है,

उकडू बैठकर साथ में, अलाव सुलगा रहे हैं सब,


अब मत पूछो यारों कि किसको कितनी जँची है,

बड़ी बेदर्दी है सर्दी साहब, जान लेने पर ही तुली है।


BY:— © Saket Ranjan Shukla

IG:— @my_pen_my_strength

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Saket Ranjan Shukla

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