सुकून की चाह में दिल को बेचैन किए जाते हैं,
ख़ुशी से मुंह फेर, ग़म को तवज्जो दिए जाते हैं,
करते हैं कोशिश कि बड़ी मुश्किल पर विजय हो,
छोटी कामयाबियों को नज़रंदाज़ कर जिए जाते हैं,
चाहते हैं कि हमारी एक अलग पहचान हो ज़माने में,
फ़िर भी कला को दफना, नकलची भेष लिए जाते हैं,
अपनी ख़ामोशी का इल्ज़ाम, हालातों को देते हैं मगर,
ख़ुद भी समाज की सुन, ख़ुद की ही ज़ुबां सिए जाते हैं,
कहने को तो करते हैं तलाश हम भी सुकून की “साकेत",
मगर बेवज़ह भी रहकर परेशान, बेचैनी के घूँट पिए जाते हैं।
Comments
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Beautiful
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