सोचो ज़रा इक दफ़ा

सोचो ज़रा इक दफ़ा

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 22 Nov, 2022 | 1 min read
#my_pen_my_strength

तुम यूँ जो हर दफ़ा बिचारे न होते तो क्या होता,

वादे निभाने में जो इतने नकारे न होते क्या होता,


मैं तो डूबा रहा दरिया-ए-इश्क़ में, तुम्हारी ख़ातिर,

सब निहारते हुए तुम किनारे न होते तो क्या होता,


गुड़-घुली बातें कर, तुम्हारा मान भी बढ़ाया मैंने ही,

तुम्हारे अल्फ़ाजों में, ये अंगारे न होते तो क्या होता,


मेरी आवारगी ने तो मुझे हद तोड़ने की हद में रखा,

तुम वो दूसरी क़िस्म के आवारे न होते तो क्या होता,


मौके तुम्हें बदनाम करने के “साकेत" के पास भी थे,

सोचो तो ज़रा कि तुम मुझे प्यारे न होते तो क्या होता।


BY:— © Saket Ranjan Shukla

IG:— @my_pen_my_strength

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Saket Ranjan Shukla

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