कोई शख़्स अपना

पराए ही लगते हैं सब

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 16 Jul, 2020 | 1 min read
#my_pen_my_strength

पहचान में नहीं आता अब कोई शख्स अपना,

हर कोई अब अनजान सा मालूम पड़ता है क्यों?

आईनों में भी नज़र नहीं आता अब अक्स अपना,

दिल मेरा मुझसे ही परायों सा बर्ताव करता है क्यों?


कुछ कमी सी है जीने में, कुछ भी पसंद आता नहीं,

खफा हूँ खुद से या इस जमाने से ही नाराज़ हूँ मैं?

कैसी राह है ये, अंधेरा भी कहीं नज़र आता नहीं है,

उम्मीद ख़ुद से रही नहीं या सबसे ही निराश हूँ‌ मैं?


निगाह-ए-धोखा, हकीकत है क्या और क्या है सपना,

अनजाना सा है ये सफ़र, रहा नहीं कोई शख़्स अपना।

BY:— © Saket Ranjan Shukla

IG:— @my_pen_my_strength

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Saket Ranjan Shukla

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