ज़िन्दगी शायद बिल्कुल बेरंग होती अगर ये बॉलीवुड फ़िल्में हमारे जीवन का हिस्सा ना होती। सच कहूँ तो ऐसा लगता है जैसे हमारे ज़िन्दगी का एक बहुत बड़ा हिस्सा है ये बॉलीवुड इंडस्ट्री। ये हमारे मनोरंजन का पूरा ख्याल रखते हुए हमारे जीवनशैली को भी बहुत प्रभावित करती है, गौरतलब बात ये है कि बॉलीवुड क्या अचानक से इतना प्रभाव डालने लगा हमारे जीवन पर या ये बात भी पुरानी है।
अब देखा जाए तो हम इन फ़िल्मों को देख कर क्या क्या नहीं सीखते, कभी धूम फ़िल्म के जॉन अब्राहम की तरह लंबे बाल रखना तो कभी खिलाड़ी कुमार यानी अक्षय कुमार की तरह मार्शल आर्ट्स के पैंतरे सीखना, शाहरूख खान की तरह दिलकश बातें बनाना या अमिताभ बच्चन की तरह आवाज़ में वज़न लाने की कोशिश करना। कभी कोई तेरे नाम फ़िल्म का राधेय बन जाता है तो कभी कोई सर मुंडवाने के बाद गजनी कहलाता है। झूला अगर पेड़ में लगाना है तो देवदास फ़िल्म में जैसे देव और पार्वती (पारो) की तरह उसका लुत्फ़ उठाना है, अगर कभी पानी भरने तालाब जाना है और बिल्लू बार्बर का गाने “खुदाया खैर” गुनगुनाते हुए जाना है। परिवार की एकजुटता सीखनी हो तो आज भी लोग ‘हम साथ साथ हैं’ देख कर सीख सकते हैं या माँ बाप के त्याग को जानना हो तो ‘बागवान' देख लें। आख़िर क्या कुछ सीखने को नहीं मिलता इन फिल्मों से।
आम ज़िन्दगी में लोगों के कपड़े भी तो फ़िल्मों को देखकर की बनवाए जाते हैं। लोग तो आजकल हर बात में फ़िल्मों के डायलॉग दोहरा दिया करते हैं। कुछ फ़िल्में ऐसी भी होती हैं जिससे हमें कुछ महान हस्तियों के संघर्ष के बारे में जानने का मौका मिलता है। कुछ फ़िल्में हमें इतिहास के रोचक घटनाओं के बारे में बताती हैं तो कुछ भविष्य में होने वाली घटनाओं से ज़रा सावधान करने की सीख दे जाती हैं।
माहौल तो ये भी है कि लोग फिल्मी सितारों से कुछ इस कदर जुड़ गए हैं कि उनके जीवन की घटनाएँ हमें भी ठेस पहुँचाती हैं। बॉलीवुड के गानों की क्या ही बात करें आज कल बिना उनके दिन काटना भी कहाँ आसान होता है। सही मायनों में फिल्मी जगत ने कई बार हमें समाज के कई काले करतूतों से परिचित करवाया है।
बहुत कुछ सीखा है हमने इस फिल्मी जगत से हमने मगर कुछ बुरे प्रभाव भी हैं इसके हमारे जीवन पर जैसे अब हम सच में आम ज़िन्दगी में इतने व्यस्त हो गए हैं कि हमारे पास हमारे अपनों के लिए वक़्त नहीं होता और अगर थोड़ा वक़्त निकल आए तो वो भी हम फ़िल्में देखते हुए निकाल देते हैं, हमें परवाह ही नहीं है कि हमारे घर में किसे हमसे क्या उम्मीदें है किसे हमसे क्या चाहिए, हमें सिर्फ इतना लगता है कि जैसे फिल्मों में जैसे सब आखिरकार ठीक हो जाता है आम ज़िन्दगी में भी ऐसा हो जाएगा, लेकिन आम ज़िन्दगी फिल्मी दुनिया से हटकर है। इसमें हर कोई अपनी कहानी का नायक है तो उसे रोकने वाला हर कोई खलनायक। फ़िल्मों से कुछ अच्छा सीखने को मिले तो सही और कुछ गलत सीखने मिले तो गलत लेकिन इसका निर्णायक कौन होगा कि गलत क्या है और सही क्या।
लेकिन एक बात तो पक्की है कि ये बॉलीवुड फ़िल्में आज भी हमारे ज़िन्दगी पर उतना ही प्रभाव डालती हैं जितना आज से 50 साल पहले डाला करती थीं। अब मैं अपनी बात करूँ तो आज भी मेरे पिताजी मुझे बागवान देखने के बाद शक की नजर से देखते हैं और मैं अपने आप को सूर्यवंशम देख देख कर कभी निराश नहीं होने देता। हमारे बोलचाल में भी बॉलीवुड की छवि दिखाई दे जाती है तो कभी हममें कोई फिल्मी हस्ती नजर आ जाती है।
BY:— © Saket Ranjan Shukla
IG:— @my_pen_my_strength
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