करूँ न करूँ शिकायतें तुझसे

करूँ न करूँ शिकायतें तुझसे

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 30 Sep, 2024 | 1 min read

हाथों से रेत की तरह, हर दफ़ा फिसल जाती है तू,

मुझे तन्हा छोड़, पता नहीं कहाँ निकल जाती है तू,


मिन्नतें करवाती है तू हरेक मुलाकात के लिए मुझसे,

और बिना दीदार दिए ही कहीं और टहल जाती है तू,


मैं शायद मैं भी न रहूँ, जो तू ना मिले किसी रोज़ मुझे,

मुझे कर बेकल इतना, न जाने कैसे सँभल जाती है तू,


थकता हूँ सारा दिन कि तेरे आगोश में रातें गुजार सकूँ,

मिले सुकून मुझे, इससे पहले ही तो बिछड़ जाती है तू,


हैं और भी शिकायतें ऐ नींद “साकेत" के पास तेरे लिए,

मगर डरता हूँ कहने से कि बड़ी जल्दी बिफ़र जाती है तू।


BY :— © Saket Ranjan Shukla

IG :— @my_pen_my_strength

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