मुझमें अब जैसी है, वैसी कोई बात न थी,
या फ़िर आज के जैसी तब कायनात न थी,
कामयाबी देखती थी हर मोड़ पर रास्ता मेरा,
व्यस्तता थी, सफ़र में ऐसी भागम-भाग न थी,
मुस्कुराकर हर किसी से मिला करता था मैं भी,
आसान था साँस लेना ये बेचारगी जो साथ न थी,
मिले कुछ नक़ाबपोश जो हमदर्दी दिखा, लुट गए,
सुबह-ओ-शाम ठगा मुझे, क़सूरवार सिर्फ़ रात न थी,
मुझे मजबूर किया वक़्त ने ही यूँ बदलने पर “साकेत",
बड़ा शांत लड़का था मैं, मेरे गुस्से में इतनी आग न थी।
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