अब कुछ चाहने की भी चाहत न रही,
बेवजह दिल लगाने की आदत न रही,
थका हूँ कुछ इस कदर, इस सफ़र से मैं,
राहों में मेरी, एक पल की भी राहत न रही,
हार गया, ख़ुद से लड़ते लड़ते आज मैं भी,
अब मुश्किलों से उलझने की ताकत न रही,
कभी अपनों के लिए आवाज़ उठाता था मैं,
अब मेरे लिए, मेरी आवाज़ में बगावत न रही,
मशहूर महफिलें तेरी गुमनाम हुईं हैं “साकेत",
लगता है लफ़्ज़ों में तेरे अब वो इनायत न रही।
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बहुत खूब
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