ख़ामोशी

ख़ामोशी भी कब तक साथ देगी किसी का... आखिरकार वो भी ज़वाब दे ही देती है

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 14 Jul, 2020 | 1 min read
Life

आवाज़ों के जंगल में, जैसे मेरी ख़ामोशी जवाब दे गई हो,

जो मेरे होकर भी मेरे ना हुए, कुछ ऐसे ही ख़्वाब दे गई हो,

ये हवाएं भी गुजर जाती हैं पास से, बिना छुए ही आजकल,

जैसे ये चुप्पी मेरी, मुझे मेरे सारे ज़ख्मों का हिसाब दे गई हो,


कुछ कहने को अब है नहीं, ये सुनने वाले सुनेंगे तो क्या सुनेंगे,

ख्वाबों की भी अब मंदी है यहाँ, बुनने वाले बुनेंगे तो क्या बुनेंगे,

जब इस सफ़र में, मैं भी ख़ुद को नहीं चुन पाता हमसफ़र अपना,

मेरा कुछ मुझमें बाकी अब नहीं, ये चुनने वाले चुनेंगे तो क्या चुनेंगे,


जैसे ज़िन्दगी मेरी, मुझे गूंगे किरदारों वाली कोई किताब दे गई हो,

ख़ामोश हूँ आज इस कदर, जैसे मेरी ख़ामोशी भी जवाब दे गई हो।

BY:— © Saket Ranjan Shukla

IG:— @my_pen_my_strength

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