Saket Ranjan Shukla
25 Jul, 2020
रूह झुलसाती मुफलिसी
मुफलिसी इतनी कि ख़ुद से भी नज़रें नहीं मिला पाता है वो,
ख़ुद को भी तो अब किस्मत पर यकीन नहीं दिला पाता है वो,
रूह झुलस जाती है उसकी, नज़रें चुराकर बहाने बनाते हुए भी,
अपनी जान के लिए, खिलौनों की कीमत नहीं जुटा पाता है वो...!
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मुफलिसी:— निर्धनता/ आर्थिक मंदी
BY:— © Saket Ranjan Shukla
IG:— @my_pen_my_strength
Paperwiff
by saketranjanshukla
25 Jul, 2020
समाज का कटु सत्य
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