रिश्ते

नई विधा

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 08 Aug, 2023 | 0 mins read

रिश्तों

का मकड़जाल

उलझता रहा मन

दर्द अथाह समझे कौन

यहाँ।


यहाँ

मोह बन्धन

अपेक्षाएँ पलती अनगिनत

अपेक्षाएँ उपेक्षित होती रहती

निरन्तर।


निरन्तर

करते प्रयास

समेटे रिश्तों को

प्रेम,विश्वास का अटूट

बन्धन।


बन्धन

कभी पीड़ा

का देता आभास

मुक्ति की रहती सदा

चाह।



चाह

अपूर्ण रहे

ईश्वर में आस्था

पूरी करेंगे चाहत सभी

जरूर।

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Ruchika Rai

ruchikarai

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