रिश्ते

रिश्ते

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 05 Apr, 2022 | 0 mins read

विपरीत परिस्थितियाँ, सब्र और इंतजार

कितना मुश्किल है कैसे होंगे पार।


रिश्तों का मायाजाल उलझाने को तैयार,

मोह का बाजार है मन लगता बेबस लाचार,

अविश्वास की गहरी खाई दिखती चारों तरफ,

कैंसे तोड़े हम संकटों से जूझकर हर दीवार।


इल्जामों की लंबी सी फेहरिस्त है बनी हुई,

दाग वह दामन पर जो जुर्म कभी नही की गई ,

किसको साबित करें किसको दे सबूत हम,

जब बिना किसी गुनाह के सजा सुना दी गई।


रिश्तों को बनाने के सारे उपक्रम है होते,

रिश्तों को निभाने में अहम का है रोते,

हर छोटी छोटी बातों पर अना की दीवार है,

बर्दाश्त न करने के चक्कर में सारी खुशियाँ खोते।


भरोसे और प्रेम का दिखता रिश्ते में अभाव,

झूठी दिखावट के लिए होते हैं सारे भाव,

काश की ये बनावटीपन का ढोंग पता चले,

फिर रिश्तों में झूठ का नही दिखता प्रभाव।


विपरीत परिस्थितियाँ सब्र और इंतजार,

कितना मुश्किल है कैसे होंगे पार।

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