खुद की पहचान के लिए भटकती रही,
जिम्मेदारियों के बीच में उलझती रही,
लगा शायद दुनिया की भीड़ में खोई हूँ,
इस तरह टूटती और मैं बिखरती रही।
दर्पण में अपने चेहरे को जब मैंने देखा,
खींच आई एक उम्मीदों भरी प्यारी रेखा,
एक ऐसी बेटी का अक्स नजर आया,
जिसने कर्मों से बनाया किस्मत का लेखा।
फिर थोड़ा और गहरे नजर मैंने दौड़ाई,
शिक्षिका की छवि उसमें थी नजर आई,
बच्चों के प्रेम और सम्मान से जिसने,
जीवन में एक अमूल्य पूँजी थी कमाई।
खुद की पहचान पर जब नजर डाली,
थोड़े में लगा मैंने बहुत कुछ है पाली,
अपने जज्बातों को पन्नों पर जब उतारा,
लगा ईश्वर ने नही की मेरी झोली खाली।
अभी जीवन के सफर में आगे निकलना है,
थोड़ा सुकून के संग जीवन शाम ढलना है,
प्रेम और स्नेह से सिंचित होकर सदा ही
आत्मविश्वास से जीवन में अपने पलना है।
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