सूरज

बाल कविता

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 27 May, 2022 | 0 mins read

सूरज दादा सूरज दादा

सुन लो जरा मेरी नादानी।

कहाँ से लाते इतनी गर्मी,

क्या तुम भी पीते पानी।


सूरज दादा ,सूरज दादा,

रोज सवेरे कैसे जग जाते।

कैसे डूबते पश्चिम में तुम,

फिर सवेरे पूरब दिशा से आते।


सूरज दादा ,सूरज दादा,

सारी रात तुम रहते कहाँ

कहाँ तुम्हारा घर ये बतलाओ,

कौन देता तुम्हें दाना पानी।


सूरज दादा ,सूरज दादा,

काले काले बादल जब गरजे।

तुम कहाँ चुपके से चल जाते,

क्या तुम भी बादलों से डर जाते।


सूरज दादा ,सूरज दादा

क्यों तुम हम सबको इतना सताते।

गर्मी में तुम आग का गोला बन जाते,

सर्दी में लुकाछिपी का खेल दिखाते।

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