आस्था और विश्वास की है ये पूजा,
इस जैसा कोई पर्व नही है दूजा।
स्वच्छता और शुद्धता का है ये प्रतीक,
सात्विकता इसमें मिलती है सदा दिख।
सामाजिक समरसता का है इसमें भाव,
अमीरी गरीबी का नही दिखता इसमें प्रभाव।
मिट्टी के बर्तन का होता है उपयोग,
जिसमें मिल जाता है कुम्हार का सहयोग।
गन्ने और गुड़ की प्रसाद में मिलती मिठास,
बतलाती जीवन में रहती सदा खुशियों की आस।
ठेकुआ का जो मिले प्रसाद,
तृप्ति मिल जाये उसका नही है जबाब।
बाँस के बने हुए दौड़ा और सूप,
बतलाते अकेले कुछ नही कर सकते भूप।
डूबते भास्कर को दिया जाता है जल,
जतलाये भूल न जाये कभी बिता हुआ कल।
उगते आदित्यनाथ की होती है जो प्रतीक्षा,
उन्नति करने वाले का स्वागत है सबकी इच्छा।
फलों में हर तरह का उपयोग होता फल,
बतलाये कोई नही उपेक्षित है आजकल।
नमन करते हुए भगवन को करते वंदन,
कीर्ति हमारी फैले जैसे चंदन।।
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