वो जमाने बड़ी याद आते हैं मुझे,
होठों पर एक तिक्त मुस्कान लाते हैं मेरे।
वह हॉस्टल की दिन की सुनहरी यादें,
मेरे जेहन में हैं चलचित्र की तरह रचे बसे,
काखी कपड़े और कांधे पर थैला
वो साइकिल पर था डाकिए का आना,
न जाने कितने ही मन में उम्मीद जगाना,
वह थैले पर उम्मीदों का पुलिंदा लाना,
जीवन के सुनहरी दिनों की याद दिलाते हैं मेरे।
वह हॉस्टल की चारदीवारी में पलते सपने,
लगते थे कि कब पूरे हो जाये वह मेरे अपने,
चिट्ठियों का आना मन में विश्वास जगाना,
प्रेम दुआ आशीष का संग लेकर आना,
जीवन के मुश्किल राह में हिम्मत जगाते थे मेरे।
वो जमाने बड़ी याद आते हैं मुझे।
कहाँ गए वह सुनहरी यादें,
इंतजार की घड़ियों में भी खुशियों की धुन,
अब ना इंतजार की कोई आकुलता,
न ही धैर्य रखने की मजबूरी,
सेकंडों में बातें ,पल में संदेशा
और मिट जाती है सारी दूरी।
पर जतन के संग चिट्ठियों का रखना ,
उन्हें संभालना ,और बार बार पढ़ना,
उदासी में मुस्कान अब भी लाते हैं मेरे
वो जमाने बड़ी याद आते हैं मुझे।
काखी कपड़े और कांधे पर थैला जेहन में बसे
चिट्ठियों में मुहब्बत की याद दिलाते हैं मुझे।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.